चौदह अपैे्ल की सुबह मैनें देखा की सुर्य देव जरा दयावान हुए हैं| छुट्टी का दिन तो था ही सो सोचा की सिनेमी घर की सैर की जाए| जैसे – तैसे दस बजे तक सारे काम – काज निपटाए और घर वालों को साथ लेकर चल दिया नजदिकी सिनेमा – घर की ओर| चुंकि वहा उम्मीद से ज्यादा ही हुजुम जुटा हुआ था, मैंने सभी को एक कोने में ठहरने को कहा और जाकर टिकट की पंक्ति में खड़ी हो गई| हाथ में मोबाइल फोन था जोकि आज के जमाने का सर्वस्व साथी बन चुका है, और मैं आदत के अनुसार उसपर इधर – उधर उंगलियाँ घुमाने लगी|
एका-एक पंक्ति में हलचल – सी महसुस हुई, देखा तो कुछ लड़के – लड़कियाँ, जोकि 17 – 18 वर्ष के जान पड़ते थे, उनका एक जत्थी आ पहुँचा था| उनमें से एक लड़का जोकि बार-बार अंगे्जी बोलकर दोस्तों पर रौब झाड़ने की कोशिश कर रहा था, मेरे पीछे आकर खड़ा हुआ| पहले तो मैंने अपने मोबाइल पर नजरें टिकाए रखी फिर ना जाने क्या मन हुआ तो पुछ बैठी – किस क्लास में पढ़ाई करते हो| बच्चे ने बडी़ अकड़ के साथ अंगे्जी में जवाब दिया कि वह ग्यारहवीं का छात्र था| मेरी उत्सुकता बढ़ रही थी, मैंने फिर पुछा – क्या आज स्कुल बंद है| इस बार उसके उत्तर में मेरे प्रति उपहास की भावना जान पड़ती थी| उसने और अधिक उग्र भावना के साथ कहा – क्या तुम नहीं जानती की चौदह अपैे्ल को छुट्टी होती है| मैं उससे उम्र में करीब २० वर्ष बडी़ थी, उसके बोलने के इस लहजे ने मेरी चेतना ही सुन्न कर दी| इसके बाद कुछ बोलने की मेरी हिम्मत ना हुई| किन्तु उनके आपसी संवाद पर मेरा ध्यान टिका हुआ था|
मैं उस वक्त स्तब्ध रह गई जब मुझे मालुम हुआ कि उनके अनुसार यह अवकाश किसी देश भक्त के शहीदी दिवस के रूप में होता है| जैसे ही ये शब्द मेरे कानों में पड़े, लगा जैसे पैरों को धरती ने जकड़ लिया हो, हृदय सुन्न हो गया, कभी सोचा ना था कि हमारे देश की युवा पिढी़ इस ओर जा रही है और हम उनसे अपनी संस्कृतिक धरोहर की संरक्षण तथा विश्व में एक नई पहचान दीलाने की जुठी आश लगाए बैठे है |
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